India’s first gold medal in Paralympics: पेरिस ओलंपिक तो खत्म हो गया, लेकिन ये शहर एक और खेलों की मेजबानी के लिए तैयार है. अब बारी है पैरालंपिक खेलों की जिसमें डिसेबल्ड खिलाड़ी भाग लेते हैं. पैरालंपिक 28 अगस्त से शुरू होंगे और इनका समापन आठ सितंबर को होगा. पिछले टोक्यो पैरालंपिक भारत के लिए यादगार रहे थे. टोक्यो में भारत ने पांच गोल्ड मेडल सहित कुल 19 पदक जीते थे. यह भारत का इन खेलों में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि पैरांलपिक में भारत के पहले पदक विजेता कौन हैं? नहीं याद आया तो आपको बता दें कि वही मुरलीकांत पेटकर जिन पर कबीर खान ने कार्तिक आर्यन को लेकर बायोपिक बनाई है. चंदू चैंपियन नाम की यह फिल्म पिछले दिनों रिलीज हुई थी और दर्शकों को काफी पसंद भी आई थी.
मुरलीकांत पेटकर भारतीय सेना में कोर ऑफ इलेक्ट्रॉनिक्स एंड मैकेनिकल इंजीनियर्स (EME) में जवान थे. मुरलीकांत एक अच्छे मुक्केबाज थे और उनकी तमन्ना ओलंपिक में पदक जीतने की थी. 1965 के भारत-पाक युद्ध में लड़ने वाले पेटकर को नौ गोलियां लगीं. इस घातक इंजरी के बाद मुरलीकांत का कमर से नीचे का हिस्सा लकवाग्रस्त हो गया .वह कुछ समय बाद ठीक तो हो गए, लेकिन उन्हें अपना एक हाथ खोना पड़ा. अब वह मुक्केबाजी नहीं कर सकते थे. फिर उन्होंने तैराकी को अपना खेल बना लिया. लेकिन वह यहीं नहीं रुके.
तैराकी में बनाया विश्व रिकॉर्ड
मुरलीकांत ने साल 1972 के हीडलबर्ग पैरालंपिक खेलों में 50 मीटर फ्रीस्टाइल इवेंट में गोल्ड मेडल जीता. उन्होंने जीत दर्ज करने के लिए 37.33 सेकेंड का समय निकाला, जो उस समय का विश्व रिकॉर्ड था. मुरलीकांत भारत के पहले पैरालंपिक स्वर्ण पदक विजेता हैं. उन्हीं खेलों में उन्होंने भाला फेंक, सटीक भाला फेंक और स्लैलम में भाग लिया. वह तीनों स्पर्धाओं में फाइनलिस्ट थे. साल 2018 में उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया.
सांगली में हुआ था जन्म
उनका जन्म 1 नवंबर, 1944 को महाराष्ट्र के सांगली के पेठ इस्लामपुर क्षेत्र में हुआ था. ईएमई, सिकंदराबाद में रहते हुए, उन्होंने एक मुक्केबाज के रूप में खेलों में भाग लिया. साल 1965 में पाकिस्तान के साथ युद्ध के दौरान उन्हें नौ गोलियां लगीं, और वह विकलांग हो गए थे. हालांकि, चोट ठीक होने के बाद उन्होंने हार नहीं मानने का फैसला किया और तैराकी और अन्य खेलों में फिर से भाग लेना शुरू कर दिया. उन्होंने 1968 के पैरालंपिक खेलों में टेबल टेनिस में भाग लिया और पहला राउंड क्लीयर किया. उन्होंने तैराकी में कुल चार पदक जीते हैं.
केडी जाधव से मिली प्रेरणा
मुरलीकांत जब छोटे बच्चे होते हैं तो वह पहलवान के. डी. जाधव के सम्मान में निकाले गए विजय जुलूस को देखते हैं. के. डी. जाधव 1952 हेलसिंकी ओलंपिक में कांस्य पदक हासिल करने के बाद देश लौटे थे. जाधव ने भारत के लिए पहला व्यक्तिगत ओलंपिक पदक जीता था. उन्हें देखकर मुरलीकांत के दिल में भी कुश्ती में नाम कमाने की इच्छा जगी. लेकिन मुरलीकांत को किसी ने सपोर्ट नहीं किया. मुरलीकांत के सपनों को भारतीय सेना ने साकार करने का मौका दिया. कोच, टाइगर अली के मार्गदर्शन में वह मुक्केबाजी करने लगे. लेकिन 1965 के युद्ध में हाथ खोने के बाद ओलंपिक पदक जीतने की उनकी महत्वाकांक्षा चकनाचूर हो गई.
उनकी उपलब्धियों को भुला दिया
भाग्य या अपनी रीढ़ में फंसी गोली से पीछे न हटते हुए, मुरली अपना सिर पानी के ऊपर रखते हैं और हीडलबर्ग पैरालंपिक में गौरव हासिल करते हैं. मुरलीकांत पेटकर ऐसे खिलाड़ी थे, जिन्हें उनकी अनुकरणीय उपलब्धियों के बावजूद भुला दिया गया. देशवासी उन्हें तब तक याद नहीं करते हैं जब तक कि एक पत्रकार उनकी उपलब्धियों पर से धूल नहीं हटा देता. फिर भी उनके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं. हो सकता है कि उनकी बायोपिक के बाद चीजें बदल जाएं. जैसे भाग मिल्खा भाग ने मिल्खा सिंह को वर्तमान पीढ़ी के लिए एक घरेलू नाम बना दिया.
चाहते हैं भावी पीढ़ियां प्रेरित हों
लेकिन मुरलीकांत पेटकर के लिए प्रचार या मशहूर होना कोई मायने नहीं रखता. उन्होंने कुछ समय पहले एक खेल इतिहासकार को दिए इंटरव्यू में कहा था. “मैं अपने देश के लिए कुछ करना चाहता था. अगर मेरे प्रयासों से तिरंगे को ऊपर उठाने में मदद मिली, तो इससे बड़ा कोई प्रचार या मान्यता नहीं हो सकती. मुझे खुशी है कि मुझ पर फिल्म बनी और अधिक लोग मेरी कहानी जानेंगे. लेकिन इसका असली महत्व तभी होगा जब पैरा-एथलीटों की भावी पीढ़ियां इसे देखकर प्रेरित महसूस करें और भारत को गौरवान्वित करने के लिए आगे बढ़ें.”