लखनऊ। वर्ष 1965 में पाकिस्तान के साथ हुए युद्ध के दौरान नौ गोलियां लगीं। इसकी वजह से दो साल तक कोमा में रहा। होश में आया तो देखा कि चारों तरफ से लोगों से घिरा हुआ हूं। मुझे लगा कि मैं पाकिस्तान में हूं इसलिए मैंने सामने मौजूद कर्नल की गर्दन पकड़ ली। जैसे-तैसे लोगों ने मेरी पकड़ से उनको आजाद किया। वहां मौजूद नर्स ने अपना परिचय पत्र दिखाया, तब जाकर यकीन हुआ कि मैं भारत में हूं। यह जुबानी है देश के पहले पैरा ओलंपिक स्वर्ण पदक विजेता पद्मश्री मुरलीकांत राजाराम पेटकर की।
पुनर्वास विवि के दीक्षांत समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में आए राजाराम पेटकर ने अमर उजाला से अपने जीवन से जुड़ीं यादें साझा कीं। उन्होंने बताया कि बचपन में अपने गांव में मैंने एक व्यक्ति का जोरदार स्वागत करते हुए देखा। घरवालों से पूछा तो बताया गया कि खेल में पदक जीतने की वजह से यह सम्मान है। उसी समय मैंने ठान लिया कि आगे चलकर खेल में नाम रोशन करना है। बड़े होकर फौज में शामिल हो गया और खेलना जारी रखा। इसी दौरान 1965 में पाकिस्तान के साथ हुई लड़ाई में नौ गोली लगने के बाद मैं कोमा में चला गया। एक गोली रीढ़ में धंसी रह गई। घटना के बाद नीचे का अंग बेकार हो गया, पर दिल में खेलने और कुछ करने का जज्बा था। इसलिए जैसे ही कुछ ठीक हुआ तो खेलना शुरू किया। वर्ष 1972 के पैरा ओलंपिक में टेबल टेनिस के साथ ही तैराकी में भाग लिया। तैराकी में स्वर्ण पदक समेत चार पदक मिले। वर्ष 2018 में इस उपलब्धि के लिए पद्मश्री मिला तो तो लगा कि जीवन में कुछ किया है।